Thursday, July 12, 2012
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के खराब संकेत
ऊपर से चमक-दमक रहे अमेरिका का यह दूसरा चेहरा है। दुनिया की महाशक्ति के बेहद संपन्न प्रांत कैलिफोर्निया के तीसरे शहर सां बनार्डीनो की परिषद ने खुद को दीवालिया घोषित किया है और आर्थिक संरक्षण की मांग की है। यह संकेत है कि यह विकसित देश धीरे-धीरे आर्थिक मंदी की चपेट में आ रहा है। नगर निकायों के पास धन का अभाव है, वेतन देने के लिए धन के लाले पड़े हुए हैं। खतरनाक बात यह भी है कि देश के कम से कम सात शहर आने वाले कुछ हफ्तों में बनार्डीनो की राह पकड़ते नजर आ रहे हैं। अमेरिका में मंदी के यह संकेत दुनियाभर के लिए बड़ी बेचैनी का कारण बन सकते हैं।
अमेरिका के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने हाल ही में अर्थव्यवस्था में वृद्धि के अपने पूवार्नुमान को 2.1 से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया था। इसके बाद अर्थव्यवस्था को लेकर लगातार नकारात्मक खबरें आ रही हैं। अमेरिका में बेरोजगारी भत्तों के दावों में पिछले हफ्ते 24,000 तक की कमी आई है और इस तरह बेरोजगारी भत्तों के दावों की संख्या 398,000 हो गई है। अप्रैल के शुरूआत से लेकर अब तक ऐसा पहली बार हुआ है, जब यह आंकड़ा 400,000 से नीचे आया है। ऐसा नहीं कि इसका अर्थ बेरोजगारी में कमी है बल्कि युवाओं में निराशा के चलते यह हो रहा है जो मान रहे हैं कि बेरोजगारी भत्ता मिल पाना मुश्किल हो रहा है। कई परिषदों ने इस भत्ते के भुगतान की प्रक्रिया रोक दी है। इस बात का समर्थन करने वाले अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में जून में मात्र 18,000 नौकरियों की बढ़ोतरी हुई। इसके कारण बेरोजगारी की दर 9.2 प्रतिशत बनी रही। इस तरह लगभग 1.40 करोड़ लोग अभी भी बेरोजगार बने हुए हैं। ऊपरी तौर पर अमेरिका में मंदी दो साल पहले ही खत्म हो चुकी है, लेकिन मंदी के दौरान नौकरियां गवाने वाले 84 लाख लोगों को रोजगार दिलाने के लिहाज से आर्थिक वृद्धि बहुत कमजोर बनी हुई है। वैश्विक मंदी के जनक अमेरिका में बेरोजगारी के आंकड़े पिछले 26 वर्ष के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच चुके हैं। खुद अमेरिकी श्रम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष जून महीने में सबसे कम नौकरियाँ गईं लेकिन जहां तक पूरे वर्ष का सवाल है 1983 के बाद से देश में बेरोजगारी की दर सबसे ऊँचे स्तर पर है। पिछले साल अगस्त में बेरोजगारी की दर 9.7 प्रतिशत ऊपर पहुँच चुकी थी। जून 1983 के बाद से यह बेरोजगारी का सबसे ऊंचा स्तर रहा है। इन आंकड़ों ने देश की आर्थिक स्थिति सुधारने की गति काफी धीमी होने का संकेत दिया है। पिछले वर्ष के अगस्त महीने से लेकर अब तक देश में 2 लाख 16 हजार नौकरियां जा चुकी हैं। अगस्त 2011 में बेरोजगारी में गिरावट कम रहने के बावजूद मई-जून 2012 में यह आंकड़ा अनुमान से अधिक 49000 था। न्यूयार्क के रोचेस्टर में मैनिंग एंड नैपियर के वरिष्ठ अर्थशास्त्री जैक बाउर के मुताबिक कि देश की अर्थव्यवस्था एक ऐसे रोगी के समान है, जिसकी हालत में सुधार तो हो रहा है लेकिन वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुई है। आर्थिक मंदी जून के आसपास ही खत्म हो चुकी है, लेकिन हालात सामान्य होने में अभी लंबा वक्त लगेगा। इस वर्ष जनवरी से बेरोजगारी के आँकड़े लगातार गिर रहे हैं पर स्थिति सामान्य होने की प्रक्रिया धीमी है। मंदी की शुरूआत के बाद से देश में 69 लाख नौकरियां खत्म हुई हैं। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार अब तक 787 अरब डॉलर का राहत पैकेज जारी कर चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजार एनवाईएसई यूरोनेक्स्ट का सर्वे भी मंदी के संकेतों का समर्थन करता है। इस सर्वे में 10 कंपनी प्रमुखों में से नौ यानि 90 फीसदी का कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और उनमें से कई विकास अवसरों के लिए भारत समेत अन्य उभरते देशों की ओर देख रहे हैं। सर्वे के मुताबिक दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2007 में केवल एक फीसदी मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने यह माना था कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा बढ़कर 29 फीसदी हो गया था। इस साल सर्वे में 24 देशों के 23 उद्योगों के 284 कंपनी प्रमुखों को शामिल किया। इन कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण 1500 अरब डॉलर का है। अधिकतर सीईओ ने कहा कि वे अपनी कंपनी के विकास के लिए वे उभरते बाजारों की ओर देख रहे हैं। करीब 40 प्रतिशत कंपनी प्रमुखों ने कहा कि उनके कारोबार के लिहाज से भारत एक महत्वपूर्ण देश है।
आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यूरोजोन के संकट ने अटलांटिक के आर-पार आर्थिक सम्बंधों के कारण अमेरिकी की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। यूरोपीय संघ अमेरिका के वस्तु एवं सेवाओं के निर्यात में करीब पांचवें हिस्से का योगदान करता है। पिछले दो साल में अमेरिका से यूरोप को होने वाले निर्यात में अमेरिका से दुनिया के अन्य हिस्सों को होने वाले निर्यात की तुलना में अधिक तेजी दिखी है। इसके साथ ही यूरोप में मांग घटने से दूसरी अर्थव्यवस्थाओं में भी विकास धीमा हुआ हुआ है, जिसके कारण अमेरिकी उत्पादों के लिए भी विदेशी मांग में कमी आई है। व्यापार के अलावा यूरोप की वित्तीय समस्या का असर भी अमेरिका के वित्तीय बाजारों पर दिखा है। हालांकि अमेरिकी वित्तीय कम्पनियों और मौद्रिक बाजारों ने यूरोप के जोखिम से बचाव की व्यवस्था कर ली, लेकिन संक्रमण का जोखिम बना हुआ है।
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