क्या चाहती है सरकार? क्यों बनती हैं इस तरह की बकवास नीतियां? क्यों हम लोकतंत्र का मजाक बनाने पर तुले हैं? भारत रत्न को खिलाड़ियों के लिए भी खोलने की तैयारी है। क्यां हम उन खिलाड़ियों को भारत रत्न मिलता झेल पाएंगे जो कोका कोला जैसे विदेशी उत्पाद बेचते नजर आते हैं? खेल के मैदान में रिकार्डों की झड़ी लगा देने का मतलब यह नहीं कि हमसे उसकी कीमत मांगी जाए। भारत रत्न हमारे लिए श्रद्धा का भी मसला है, यह किसी टुच्चे उत्पाद के ब्रांड एंबेस्डर और समाज में अलग तरह का आचरण करने वाले खिलाड़ी को मिले, यह शायद मेरी तरह तमाम लोगों को कतई बर्दाश्त नहीं।
एक बार फिर हम आजादी की वर्षगांठ बनाने की तैयारी में हैं। बहुत कीमत चुकाकर हमने पाई है यह आजादी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सेनानी रहे चौधरी रुस्तम सिंह मेरे पड़ोसी थे। बात करीब दस साल पुरानी है, नेताजी के जन्मदिन पर जागरण के लिए उनका इंटरव्यू किया। मैंने पूछा कि फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों को पद्म पुरस्कार मिलते देखकर आपको कैसा लगता है, उन्होंने गुस्से में कहा, नचकइयों के लिए नहीं हैं यह सब। उनके लिए फिल्मों के तमाम अवार्ड हैं तो। उनका साफ कहना था, पद्म पुरस्कार इतने बड़े हैं कि उनके लिए पात्रों का चयन करते वक्त जरा सी चूक देश के सम्मान को ठेस पहुंचा सकती है। वो नेताजी के निजी अंगरक्षक रहे थे। सुबह सैर के वक्त पद्मश्री डॉ. लाल बहादुर सिंह चौहान से मुलाकात हुई। चर्चा चली तो उन्होंने भी विरोध किया। बोले, भारत रत्न के चयन में लापरवाही नहीं चलेगी।
बहरहाल, भारत रत्न यदि खिलाड़ियों के लिए खुले तो मास्टर ब्लास्टर जैसे नामों से चर्चित सचिन तेंदुलकर और शतरंज के ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद के नाम चुनने वालों के सामने सबसे पहले आएंगे। सचिन बेशक, बिरले खिलाड़ी हैं लेकिन क्या हम यह बर्दाश्त कर सकते हैं कि हमारा भारत रत्न किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के जूते या कोल्ड ड्रिंक बेचता नजर आए। आनंद ने भी विज्ञापन किए हैं। फिर खिलाड़ियों के लिए राजीव गांधी खेल रत्न जैसे पुरस्कार हैं तो, दोनों खिलाड़ी इन पुरस्कारों तक पहुंच चुके हैं। देना ही है तो कड़ी स्क्रीनिंग करनी होगी। मामले पर सरकार को समझदारी से निर्णय लेना है क्योंकि जरा सी चूक देश के लिए शर्मिंदगी की वजह बन सकती है। सरकार सचिन से कहे कि विज्ञापन करना छोड़ें और क्रिकेट से संन्यास लें वरना मैदान में जरा भी विपरीत आचरण पूरे देश का अपमान साबित होगा। और मैदान में रहकर कभी न कभी तो इस तरह आचरण तो करना ही पड़ सकता है। यह बहुत बड़ा निर्णय होगा और सरकार को समझदारी तो दिखानी ही होगी। सरकार महज रिकार्डों को ढेर को आधार न बनाए, सोचे कि कैसे यह दोनों चीजें एकसाथ चलेंगी। ईश्वर सरकार को सोचने की सदबुद्धि प्रदान करे।
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