Tuesday, April 17, 2012
मुस्लिम परस्ती की राह पर अखिलेश
मुस्लिमों के मोर्चे पर उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार आगे बढ़ रही है। पहले मुस्लिमों को मंत्रिमंडल में पर्याप्त स्थान दिया गया, और अब ट्रांसफर-पोस्टिंग में उन्हें अहमियत मिल रही है। अल्पसंख्यक कल्याण के भरपूर वायदे कर चुनावी समर फतह करने वाली समाजवादी पार्टी बेशक दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी के आरोपों से झटके में हो लेकिन उसके कदम बेहद सधे हुए हैं। मुस्लिमों को हर जगह प्राथमिकता मिल रही है। आतंकवादी कहकर गिरफ्तार किए गए मुस्लिम युवकों की रिहाई के कदमों से सबसे ज्यादा विवाद है। अफसरशाही में इस वर्ग का वर्चस्व बढ़ रहा है। विपक्षी दल चाहें इसे तुष्टिकरण की राजनीति कहें लेकिन सरकार निश्चिंत हैं, लगातार उठ रहे कदम इसी निश्चिंतता का उदाहरण हैं।
प्रदेश में नए हालात में राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। आईएएस संवर्ग में मुस्लिम अधिकारियों का प्रतिशत अनुमानत: तीन तथा 1200के पीसीएस संवर्ग में लगभग चार प्रतिशत है। फिलहाल ब्यूरोक्रेसी के सबसे उच्च पद पर मुस्लिम वर्ग के वरिष्ठ अधिकारी जावेद उस्मानी मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं। मुख्यमंत्री के एक विशेष सचिव भी मुस्लिम हैं। इसी प्रकार कामरान रिजवी, माजिद अली, इफ्तखारउद्दीन आदि कई अधिकारी महत्वपूर्ण पदों पर तैनात हैं। पुलिस विभाग में भी जावीद अहमद, जावेद अख्तर और रिजवान अहमद जैसे तमाम अधिकारियों का नाम शामिल है जो महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहे हैं। प्रदेश विधानसभा में इस बार 69 मुसलमान प्रत्याशी जीते हैं। यह संख्या पिछली बार (55) से ज्यादा है बल्कि अब तक का रिकॉर्ड है। अनुपात के रूप में कुल विधायकों में से 17.12 प्रतिशत विधायक मुसलमान हैं। इनमें से 43 विधायक समाजवादी पार्टी के, 16 बसपा के, 3 पीस पार्टी के, 2 कौमी एकता दल के, 4 कांग्रेस के और एक विधायक इत्तेहाद-उल-मिल्लत का है। इस संबंध में सरकार का तर्क है कि चूंकि मुस्लिम विधायकों की संख्या ज्यादा है इसलिये मंत्री पद ज्यादा दिए गए हैं। सपा में जीतकर आए मुस्लिम विधायकों में से आजम खां, अहमद हसन और डॉ. वकार अहमद शाह को कैबिनेट स्तर का मंत्री बनाया गया जबकि सात मुस्लिम विधायकों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है। इतना कुछ करने के बाद भी मुस्लिमों की ओर से अन्य लालबत्तियों से नवाजे जाने की मांग सरकार को परेशान कर रही है। फिलहाल बसपा मुखिया मायावती के विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण रिक्त सीट पर सपा किसी मुसलमान को टिकट देगी, इसकी सभावना है। आरोप यह भी है कि राज्य सरकार सहायता और विकास जैसे मामलों में धर्म जाति के नाम पर भेदभाव कर रही है। मुस्लिम लड़कियों को एकमुश्त रकम देने की सरकार ने घोषणा की है जबकि अन्य अल्पसंख्यक वर्ग और हिन्दुओं की लड़कियों को इसमें शामिल नहीं किया गया। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी वित्तीय प्रबंधन के विशेषज्ञ समझे जाते हैं।
इसी तरह हाई स्कूल पास और शादी योग्य मुस्लिम लड़कियों की अनुमानित संख्या पूरे प्रदेश में लगभग 50 लाख होगी। प्रति बच्ची 30 हजार के हिसाब से यह खर्च लगभग 1500 करोड़ के आसपास होगा। इस तरह सरकार को एक वर्ष में इन सभी मदों पर खर्च के लिए लगभग 6180 करोड़ रूपए का इंतजाम करना पड़ेगा और अगर सरकार के पूरे कार्यकाल के मद्देनजर देखें तो उसे लगभग 309 अरब रूपए इन वायदों को पूरा करने के लिए जुटाने पड़ेंगे। वैसे अखिलेश का यह कहना गलत नहीं है कि जब पत्थरों पर खर्च करने के लिए सरकार हजारों करोड़ जुटा सकती है, तो रचनात्मक और जनहित के कामों पर खर्च करने के लिए धन आखिर क्यों नहीं उपलब्ध होगा। एक और विवादित कदम के तहत सरकार ने आतंकी घटनाओं और आतंकी संगठनों से संबंध रखने के आरोप में जेलों में बंद बेगुनाह मुस्लिम आरोपियों को छुड़ाने की पहल शुरू की है। सपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद मुस्लिम नौजवानों को रिहा करने की घोषणा अपने चुनावी घोषणापत्र में की थी। गौरतलब है कि 2007 में फैजाबाद, लखनऊ, वाराणसी में हुए बम धमाके, गंगाघाट और संकटमोचन मंदिर वाराणसी, छाया टाकीज गोरखपुर में विस्फोट तथा अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि और रामपुर सीआरपीएफ मुख्यालय पर आतंकी हमले हो चुके हैं। इन धमाकों के बाद पुलिस और एटीएस ने कई संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया था। मामला इतना बढ़ा था, यूपी में आकर गैर राज्यों की एटीएस और खुफिया पुलिस अपने यहां हुए बड़े अपराधों से जुड़े लोगों को यहां से गिरफ्तार कर चुकी है। इस संदर्भ में प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों और जेल अधिक्षकों से सूची मांगी गई है। सूची आने के बाद आगे की कार्रवाई शुरू की जाएगी। विपक्षी दल कहते हैं कि राज्य सरकार का यह कदम काफी खतरनाक है। जिन लोगों को रिहा कराने की बात सरकार कर रही है उनके पास से डेटोनेटर और विस्फोटक बरामद किए गए थे और उनके ऊपर हूजी, सिमी, लश्करे-ए-तैय्यबा और आईएसआई जैसे संगठन से जुड़े होने का आरोप है। सन 2007 में बसपा की सरकार में यूपी की कचहरियों लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद में हुए धमाकों के आरोप में आजमगढ़ से तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद को यूपी एसटीएफ ने आपराधिक शैली में अपहरण किया जिसके तमाम गवाह मौजूद हैं। ऐसे में सरकार के कदम के आलोचकों की बातों में दम नजर आता है।
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