करीब सौ कंपनियों, मार्केट वैल्यू 77.44 अरब, 3796 अरब आय, 80 से अधिक देशों में सक्रिय सवा लाख कर्मचारियों के परिवार 'टाटा' को अपना नया मुखिया मिल गया। सापुरजी पालोनजी समूह के प्रबंध निदेशक सायरस पी मिस्त्री रतन टाटा के उत्तराधिकारी होंगे जो दिसम्बर 2012 में पद छोड़ने वाले हैं। सायरस की उम्र मात्र 43 साल है। सापुरजी पालोनजी ग्रुप की टाटा संस में 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी है। चार जुलाई 1968 को जन्मे सायरस ने लंदन बिजनेस स्कूल से मास्टर ऑफ साइंस इन मैनेजमेंट की डिग्री ली है। 1991 में जेआरडी टाटा से पदभार संभालने वाले रतन ने कोरस स्टील और जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण कर इस कंपनी को दुनिया के नक्शे पर ला दिया। यह वह कंपनी है जिसने देश में पहली बार निजी क्षेत्र की एयरलाइंस शुरू की। रतन टाटा जब टाटा संस के चेयरमैन बने थे तो उनके समक्ष बड़ी चुनौती थी। उन्हें जेआरडी टाटा जैसे व्यक्तित्व को पार करना था। इसमें उन्होंने सफलता पायी और रतन टाटा ने टाटा सन्स को देश से लेकर विदेशों में पहुंचा दिया। यह वह कंपनी बन गई जिसकी 58 प्रतिशत आय देश के बाहर से होती है। टाटा समूह के लंबे-चौड़े बायोडाटा पर चर्चा करने का वक्त हमें उस वक्त मिल रहा है जबकि देश की अर्थव्यवस्था में धीमी दर से मंदी की दस्तक सुनाई दे रही है। रुपया गिरावट के रास्ते पर है और यूरोप में आर्थिक संकट से आधी से ज्यादा दुनिया दहशत में है।
सायरस का सबसे पहले सामना स्टील की बढ़ती कीमतों से होने जा रहा है। उन्हें सोचना होगा कि कैसे सस्ती स्टील का उत्पादन बढ़ाया जाए और कैसे भारत में उसकी खपत बढ़े। टाटा की पहचान स्टील की गुणवत्ता से भी है, ऐसे में यह देखने का दायित्व भी है कि अच्छी क्वालिटी के साथ ही सस्ती कीमतें ग्राहकों के समक्ष परोसी जाएं। केंद्रीय इस्पात मंत्रालय कह रहा है कि भारत में इस्पात खपत बढ़ाने की संभावनाएं उज्ज्वल हैं। लेकिन कैसे, यह देखना कंपनियों का काम है। बेशक, सायरस पर यह जिम्मा सर्वाधिक है। कंपनी पर यूरोपीय देशों के संकट का असर कम से कम पड़े, यह भी उन्हें ही देखना है। टाटा स्टील के विस्तारीकरण का कार्य रतन टाटा के नेतृत्व में आरंभ हुआ है जिसे अंजाम तक पहुंचाना है। आटोमोटिव क्षेत्र में आम आदमी की कार 'नैनो' की बुकिंग कम हुई है, जबकि प्रतिस्पर्धी कोई ब्रांड अभी तक बाजार में नहीं आया है। कार के गुण बढ़ाने के बावजूद कायम रही ये चिंता समूह में सबसे ऊपर है। कॉमर्शियल वाहनों के बाजार का दायरा विदेशों तक पहुंचाने का प्रोजेक्ट भी एक चुनौती से कम नहीं, ऐसे में जबकि कई विदेशी बाजार संकटग्रस्त हैं। अभी कई काम है, जो साइरस मिस्त्री नहीं जानते। टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा टी, टाटा से संबंधित कई तरह के प्रोडक्ट है, जिनकी जानकारी अभी होनी बाकी है। रतन अभी एक साल से ज्यादा समय तक कंपनी के साथ हैं, उनके ट्रेनर की भूमिका में हैं। रतन टाटा के साथ उनको काफी समय देना होगा, जिसके बाद ही उनको कई तरह की जानकारियां हो सकेंगी। टाटा संस के निदेशक रहे डॉ. जेजे ईरानी कहते हैं कि कम उम्र के व्यक्ति के चयन से कंपनी में ऊर्जा बढ़ेगी। बेशक, रतन टाटा और मिस्त्री में उम्र का अंतर है, लेकिन जब कोई काम साथ में करता है तो अंतर नहीं होता। सायरस ने स्वीकार भी किया है कि चुनौतियां हैं। समूह के मूल्यों और मानदंडों को ध्यान में रखते हुए मैं इस जिम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लेता हूं। भविष्य में हितों के टकराव का कोई मुद्दा नहीं आए, इसके लिए मैं मेरे पारिवारिक कारोबार के प्रबंधन से खुद को कानूनी रूप से अलग करूंगा। मुङो पता है कि मेरे पास एक महान विरासत की बड़ी जिम्मेदारी होगी। समूह के साथ ही देश के हित में भी है कि सायरस जल्दी सीखें। उनकी कामयाबी में देश की प्रतिष्ठा जो छिपी है।
***एक के अतिरिक्त किसी चेयरमैन का कोई वारिस नहीं***
टाटा ग्रुप की इस हकीकत के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि टाटा ग्रुप में इनके फाउंडर चेयरमैन के अलावा किसी भी चेयरमैन के कोई वारिस नहीं था। टाटा कंपनी की स्थापना जमशेदजी नुसेरवांजी टाटा ने की थी उन्होंने अपनी 1887 में एक पार्टनरशिप फर्म टाटा एंड संस की स्थापना की 1904 में उनके निधन के बाद उनके बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा ने इसकी कमान संभाली और उन्होंने 8 नवंबर 1917 में कंपनी का नाम बदलकर टाटा संस एंड कंपनी कर दिया। लेकिन 1932 में उनकी भी मौत हो गई उनके कोई औलाद नहीं थी जमशेदजी की वसीयत के मुताबिक टाटा कंपनी का चेयरमैन उनकी बहन के बड़े लड़के सर नॉवरोजी सकटवाला को बनाया गया। सर नॉवरोजी सकटवाला की 1938 में मृत्यु के बाद जेआरडी टाटा को टाटा ग्रुप का वारिस बनाया गया। जेआरडी टाटा जमशेदजी टाटा के कसन के लड़के थे उन्होने भारत की पहली कमर्शियल एयरलाइंस की शुरुआत 1932 में की थी। लेकिन जिस तरह से दोराबजी टाटा और नॉवरोजी टाटा के कोई औलाद नहीं थी उसी तरह से जेआरडी टाटा के भी कोई बच्चा नहीं था। 1991 में रतन टाटा को ग्रुप चैयरमेन बनाया गया रतन टाटा नवल टाटा के बेटे थे। नवल टाटा को जमशेदजी टाटा के दूसरे बेटे ने गोद लिया था। रतन टाटा को जेआरडी टाटा ने 1981 में ही टाटा ग्रुप की कमान सौंपने का फैसला कर लिया था। रतन टाटा के भी कोई बच्चा नहीं है क्योंकि उन्होंने शादी ही नहीं की है।
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