Thursday, January 24, 2019

चुनौतियों से रूबरू इमरान

पाकिस्तान विस्फोट के मुहाने पर है। चीन के बढ़ते कर्ज और अमेरिका के हाथ खींचने के बाद आर्थिक मोर्चे पर बदहाली बढ़ी है। ढांचा ढह रहा है। सुधार के शुरुआती संकेतों से उत्साहित नए प्रधानमंत्री इमरान खान का भारत विरोधी सुर पकड़ना बेवजह नहीं है। अच्छा होने-करने के लिए उत्साह से लबरेज इमरान मानने लगे हैं कि कुछ भी काबू में आना मुश्किल है और अवाम को फुसलाने के लिए भारत विरोध का पारंपरिक एजेंडा ही कारगर है। असल में, भारत में सशक्त सरकार ने भी हौसले पस्त किए हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे मुंह की खानी पड़ रही है। 

पाकिस्तान की चर्चा का यह वक्त अचानक नहीं आ गया। सत्तासीन होने के बाद इमरान खान ने जो सकारात्मक संकेत दिए थे, करतारपुर कॉरिडोर खोलने की घोषणा जैसे कुछ सकारात्मक कदम उठाए भी थे, उससे यह उम्मीद जगने लगी थी कि वह अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अलग हैं और कुछ अच्छा करना चाहते हैं। उनके मुख से भारत से दोस्ती के लिए कुछ अच्छी बातें भी हुई थीं। लेकिन उनके तेवर पलटने लगे। अभिनेता नसीरुद्धीन शाह की असुरक्षा की चिंताओं पर हां में हां मिलाने के साथ ही उन्होंने जता दिया कि पाकिस्तान में चीजें नहीं बदलेंगी अपितु भारत विरोध का पुराना एजेंडा ही चलेगा।इमरान चौतरफा चुनौतियों से रूबरू हैं। आर्थिक मोर्चे पर अमेरिका ने हाथ खींचना शुरू कर दिया है। तमाम प्रयासों और स्पष्टीकरण के बावजूद अमेरिका मान नहीं रहा। आतंकवाद के मददगार के रूप में कुख्याति अमेरिका के साथ रिश्ते में फांस बन गई है। उधर, चीन हर तरह की मदद के लिए आतुर रहकर खुद पर निर्भरता बढ़ा रहा है। हाफिज सईद के मुद्दे पर अमेरिका रुष्ट है लेकिन चीन मददगार। सेना की कठपुतली इमरान चाहकर भी हाफिज सईद का विरोध नहीं कर सकते क्योंकि उसे सेना का संरक्षण है। सईद के खुलेआम विचरण से दुनिया में देश की ख्याति मलिन होती है।
इसके साथ ही, आंतरिक हालात भी परेशानी का सबब हैं। सिंध और बलूचिस्तान के बाद खैबर पख्तूनवा और वजीरिस्तान ने भी अलग देश की मांग पर बवाल मचा रखा है। इमरान के पीएम बनने के बाद पख्तूनियों के 27 वर्षीय नेता मंजूर पश्तीन ने कई दिन तक लगातार आंदोलन छेड़ा। वह लाखों पख्तूनियों के एकछत्र नेता हैं और उनकी आवाज पर बवंडर उठ जाया करता है। समस्या विकराल है क्योंकि पाकिस्तानी सेना में पख्तूनियों की संख्या 25 फीसदी से ज्यादा है और सेना में बगावत का खतरा है। पाकिस्‍तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और गिलगित-बाल्टिस्तान में भारत से बातचीत शुरू करने की मांग को लेकर आंदोलन तेजी पकड़े हुए है। मांग क्षेत्र से सेना हटाए जाने की भी है। जम्मू कश्मीर में अशांति के अपने आरोपों पर पाकिस्तान दृढ़ नहीं हो पाता क्योंकि पीओके में उसके विरुद्ध बगावत के सुर बात कमजोर कर देते हैं। बलूचिस्तान में भी अलगाववादी आंदोलन तेज हैं। आरोप है कि इस राज्य को पाकिस्तान ने जबरन हथिया रखा है। बलूचियों को चिंता है कि चीन के आर्थिक गलियारे के बाद उनका शोषण बढ़ जाएगा और उन्हें दबाने के लिए चीन और पाकिस्तान मिलकर कहर बरपाएंगे। बलूचिस्तान में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन हैं, यहां कॉपर, गोल्ड, लीथियम और कई दुर्लभ खनिज पदार्थ मिलते हैं। पाकिस्तान इस इलाके से प्राकृतिक गैस निकालता है लेकिन इस प्रांत को कोई रॉयल्टी नहीं मिलती। यही वजह है कि बलूच लिबरेशन फ्रंट इकनोमिक प्रोजेक्ट्स पर अक्सर हमले करता रहता है। पाकिस्तान ने अपने 15000 सैनिक इन प्रोजेक्टों की रक्षा के लिए लगा रखे हैं। देश की कुल आबादी में बलूचों की संख्या पांच फीसदी से ज्यादा है। इसी तरह सिंध में आवाजें उठती रही हैं। नई मुश्किल बलूच और सिंधियों का एकजुट आंदोलन है। पाकिस्तान के कुल कर संग्रह में सिंध की हिस्सेदारी 70 फीसदी के आसपास है। सिंध में ही कच्चे तेल और गैस का सर्वाधिक उत्पादन होता है। फिर भी यह पाकिस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार है। बंटवारे के वक्त सिंध के लोगों ने खुद ही पाकिस्तान में शामिल होने का समर्थन किया था, लेकिन बाद में दमन की वजह से पाकिस्तान से मोहभंग हो गया। इमरान को चूंकि सेना के समर्थन से विजयी प्रधानमंत्री माना जाता है इसलिये आक्रोश ज्यादा है।

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