Wednesday, July 24, 2013
अब तो अपने 'रूपे' का इंतजार...
भारतीय अर्थ जगत में एक बदलाव दस्तक दे रहा है। आसार अच्छे हैं। इस परिवर्तन के तहत जल्द ही माइस्त्रो, वीजा, मास्टर, अमेरिकन एक्सप्रेस और साइरस कार्ड के दिन लदने वाले हैं, उनकी जगह लेगा भारतीय कार्ड रूपे। सितम्बर से यह भारतीय कार्ड विदेशी समकक्ष कार्डों को खदेड़ने में सफल होने लगेगा। वित्तीय तंत्र के लिए यह अच्छा संकेत होगा। प्रतिदिन करीब तीन हजार करोड़ रुपये जो लेन-देने के दौरान दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित इन कार्डों को चलाने वाली प्रतिष्ठित विदेशी कम्पनियों के खाते में फंस जाते हैं, वह रूपे (Ru-pay) के जरिए भारत में ही रहेंगे और भारतीय मुद्रा तंत्र को मजबूती देंगे।
आपके पास डेबिट या क्रेडिट कार्ड वीजा का होगा या मास्टर या माइस्त्रो या फिर साइरस का। अमेरिकन एक्सप्रेस भी प्रचलित ब्रांड है। असल में, यह दुनियाभर में प्रचलित इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा कार्ड हैं। ये कार्ड विदेशी भुगतान प्रणाली पर चलते हैं। इनका दुनियाभर की भुगतान प्रणाली पर एकछत्र राज है। आसान शब्दों में कहें तो दुनिया के ज्यादातर देशों की बैंकें भारी-भरकम राशि देकर इन कार्ड कम्पनियों से करार करती हैं। इससे वीजा जैसे कार्डों के जरिए आर्थिक लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक रूप में होने लगता है। व्यावहारिक रूप में यह प्लास्टिक कार्ड इलेक्ट्रॉनिक चेक की भांति कार्य करता है, इसके जरिए शाखा में बगैर जाए आप अपना धन खाते से निकाल सकते हैं। कार्डों का उपयोग कुछ देशों में इतना व्यापक हो चुका है कि इसने चेक की जगह ले ली है। अन्य देशों की तरह भारत में भी इंटरनेट बैंकिंग, आनलाइन कर भुगतान, क्रेडिट एवं डेबिट कार्डों का प्रयोग, इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा प्रणाली, राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी), के साथ ही तत्काल सकल भुगतान प्रणाली आदि को आधुनिक बना दिया है। इससे कार्यकुशलता आई, कार्य किफायती हुआ, भुगतान प्रणालियों में पारदर्शिता आई और विश्वसनीयता भी बढ़ गई। आधुनिकीकरण के इसी दौर में मजबूरी में ही सही, पर विदेशी कम्पनियों के कार्डों का वर्चस्व स्थापित हो गया। एक अनुमान के अनुसार, दुनिया के करीब 43 प्रतिशत आनलाइन भुगतानों का माध्यम मास्टर कार्ड है। इसी तरह वीजा कार्ड का अच्छा-खासा बाजार है। एक्सिस बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में दो करोड़ 30 लाख से ज्यादा वीजा क्रेडिट कार्ड हैं जबकि 30 करोड़ के आसपास एटीएम कार्ड यानि डेबिट कार्ड धारक। समस्या यह नहीं कि यह कार्ड विदेशी हैं, बल्कि यह है कि हमारे वित्तीय लेन-देन का लगभग आधे से ज्यादा तंत्र इन्हीं कार्डों पर आश्रित हो गया है। हालांकि मुश्किलें भी कम नहीं। उदाहरण से समझें कि यदि आपने किसी वस्तु के लिए आनलाइन पेमेंट किया या कोई बिल अदा किया। तकनीकी कारणों से पेमेंट फेल हो गया लेकिन राशि आपके खाते से कट गई तो जितने दिन राशि आपके खाते में वापस नहीं आएगी, उसमें इन कार्ड कम्पनियों का भी फायदा है।
एक तो अंतरणों की संख्या एक से बढ़कर दो हो जाएगी। ऊपर से, पेमेंट के लम्बित होने के वक्त का ब्याज भी जेब में जाएगा। चूंकि सेवाएं लेना बैंकों की मजबूरी है इसलिये यह कम्पनी अपनी शर्तों पर ही काम किया करती हैं। सेवा शुल्क भी इतना ज्यादा है कि बैंकें एटीएम स्थापना के बाद अन्य शुल्क लगाकर इस खर्च की भरपाई किया करती हैं। ऐसे में आवश्यकता थी कि किसी न किसी तरह विदेशी कार्डों का आधिपत्य समाप्त या बेहद कम कर दिया जाए। यही आवश्यकता रूपे कार्ड की जननी बन गई। एशिया की आर्थिक महाशक्ति चीन पहले ही यूनियन पे आॅफ चाइना के नाम से विदेशी कार्डों का विकल्प तलाश चुकी थी। वर्ष 2009 में भारतीय रिजर्व बैंक की पहल पर भारतीय बैंक संघ ने गैर-लाभकारी भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम बनाया और निगम ने अप्रैल 2011 में रूपे को विकसित किया। अगले ही माह महाराष्ट्र में शहरी सहकारी क्षेत्र के गोपनीथ पाटिल पर्तिक जनता सहकारी बैंक के माध्यम से पहला रूपे कार्ड लांच हो गया। इसके बाद काशी-गोमती संयुक्त ग्रामीण बैंक ने यह कार्ड जारी किया। निगम इस समय सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को जोड़ने की कवायद में जुटा है, इनमें बैंक आॅफ इंडिया पहला बैंक है जिसने रूपे को स्वीकार किया है। इन बैंकों ने वित्तीय समावेशन के तहत जोड़े गए ग्राहकों को यह कार्ड जारी किया। यह कार्ड अभी सीमित सेवाएं दे रहा है, लेकिन बाद में इसे क्रेडिट कार्ड के रूप में भी जारी किया जाएगा।
योजना के मुताबिक, सितम्बर में व्यावसायिक तौर पर जारी होने के बाद यह कार्ड वीजा और मास्टर कार्ड जैसी वैश्विक भुगतान प्रणाली की जगह ले लेगा। इसके लिए देशभर की करीब आठ लाख आॅटोमेटिक टेलर मशीन (एटीएम) में बदलाव होगा। बदलाव की यह प्रक्रिया हालांकि शुरू हो चुकी है, अभी तक करीब पौने दो लाख मशीनों में यह बदलाव किया जा चुका है। इस माह के अंत तक यह संख्या पांच लाख पहुंच जाएगी। इसके तहत प्रत्येक एटीएम को रूपे गेटवे कार्ड के लिए सॉफ्टवेयर से लैस किया जा रहा है, फिर इनमें वीजा, मास्टर, साइरस या माइस्त्रो कार्ड के साथ ही रूपे कार्ड का इस्तेमाल भी संभव होगा। हालांकि बैंकों और उनके ग्राहकों के लिए कार्ड में बदलाव की पूरी प्रक्रिया बेहद खर्चीली साबित हो रही है। बैंक प्रत्येक नए कार्ड पर 45 रुपये के आसपास खर्च कर रहे हैं। कुछ बैंक विभिन्न लाभकारी योजनाओं में निवेश करने वाले ग्राहकों के लिए यह राशि अपनी जेब से अदा कर रहे हैं तो कुछ की योजना ग्राहकों से वसूल करने की है। दीर्घकालिक लाभ हासिल होने की पक्की संभावना के चलते यह सौदा न बैंकों के लिए घाटे का है और न उसके ग्राहकों के लिए। एटीएम संचालन में सुविधा बढ़ोत्तरी और विभिन्न शुल्कों में कटौती यह दर्द कम करने वाली है।
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